स्वर्ग बेच धरती है कमाया Poem by Aftab Alam

स्वर्ग बेच धरती है कमाया

Rating: 5.0

दौड़ रहे क्यों गिर- गिर पथ पर,
रथ को तनिक सम्भालो
शिखर चुमना बाकी है,
हिम्मत तनिक जुटालो,

मन के अंधियारे में सखी तुम,
दीप तनिक जलालो,
जहां दिखे प्रकाश सखी तुम,
झट पग अपना बढ़ा लो

ओह- पोह और असमंजस की,
ख्याल तनिक हटा लो
मानवता चले किस डगर धरा पर,
राह तनिक बना लो

स्वर्ग बेच धरती है कमाया,
गज़ब की सौदेबाज़ी,
औंधे पड़े आकाश निहारते,
तनिक आंखो को तो खोलो,

बहुत हुआ यह खेल हमारा,
भटक भटक कर भटके
अस्तो मा सदगमय भूले,
गांठ तनिक अब खोलो

Tuesday, December 16, 2014
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Ramesh Rai 16 December 2014

Aapki hindi bahut acchi hai. love it.

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Ramesh Rai 16 December 2014

Aapki hindi bahut hi achhi hai. love your write.

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RANCHI,
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