वो मन की राणी Poem by Dr. Ravipal Bharshankar

वो मन की राणी

परी परी इक हंसिनी
खोई खोई जल भँवर में
अंबर को निहारती विहारती
वो मन की राणी लहरें बिखेरे
टकराती लहरों को पंखों में समाए
वो मन की राणी
क्या कभी कोई लहर
उसने हृदय से लगाई
क्या कभी कोई अगन
उसने मन में जगाई
वो मन की राणी
मन का मोती जल भँवर में
उछाला क्या कोई प्रार्थी
या फिर उसने मन भावन
सजाई कोई आरती

(डॉ. रविपाल भारशंकर)

Monday, December 29, 2014
Topic(s) of this poem: love
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