सर, कार आप की है
जैसा जी चाहे, चलायें
ठोकिये, पीटये, रौंदिये
सर, कार आप की है
आप को सौंप दिया
अपने अरमानों का कार
अपने इच्छाओं से
चाहते न चाहते हुये
हमारी अमानत
सर, कार आप की है
रौशनी हो या न हो
पतझड़ की तरह ठूँठ
सड़कों के किनारे
फ़िर लदेगें गरीबी के फ़ल
जितना जी चाहे तोड़ लेना
एक छटके से
सर, कार आप की है
सर, सब को बैठा कर चलायें
या अकेले ही चलायें
मर्जी आप की है, लेकिन
ऊब से जन्मे विचार
किसी खाई से कम नही
बाकी आप की मर्जी
सर, कार आप की है//
आफ़ताब आलम 'दरवेश
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem
A nice satire, very true everywhere, Aap ko saunp diya apne armanon ka kar, apni ikchaon se chahte na chahte hue, hamari amanat, sarkar aapki hay.