अनंत विकास का क्रम Poem by Shobha Khare

अनंत विकास का क्रम

नाश भी हू मै अनंत विकास का क्रम भी,
त्याग का दिन भी चरम आसक्ति का तम भी,
तार भी आघात भी झँकार की गति भी,
पात्र भी मधु भी मधुप भी मधुर विस्मृत भी;
अधर भी हू और स्मित की चाँदनी भी हू! !

Sunday, August 31, 2014
Topic(s) of this poem: Life
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