खिलने से पहले झरती जो Poem by Shobha Khare

खिलने से पहले झरती जो

खिलने से पहले झरती जो
वह कलिका भी कुछ कह जाती
है वह भी नदी सार्थक जो
पथ नहीं मरुस्थल मे पाती

यह तुझे पता है भली भाति
जीवन मे कुछ भी व्यर्थ नहीं
जो पीछे छूट गया लगता
खोया है उसका अर्थ नहीं! !

Sunday, August 31, 2014
Topic(s) of this poem: Life
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