अब तक रहे देखते सब को Poem by Shobha Khare

अब तक रहे देखते सब को

अब तक रहे देखते सब को
अब तुम मेरी ओर निहारो
सब के बीच जगह थोड़ी सी
दे कर, कृपया मुझे उबारो

ऐसी जगह मुझे दो जिस का
लगता कोई शुल्क नहीं है
जहां खड़ी कर के प्राचीरे
बाटा जाता मुल्क नहीं है

भेद नहीं मानापमान में
जहा, वहा मुझ को बैठाओ
जहां नहीं कोई आडंबर
हे प्रभु! मुझे वही पहुचाओ! !

Sunday, August 31, 2014
Topic(s) of this poem: Life
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