वक़्त की करवट की संग में भी पलट कर रह गया।
मेरा साया मेरे क़दमों से लिपटकर रह गया।
आंसुओं की धार बनकर बह चला मेरा वजूद,
कल का समुन्दर आज क़तरों में सिमटकर रह गया।
जिन्दगी हमने जी हादसों की तरह।
उम्र अपनी कटी रास्तों की तरह।
मौत से मुंह छिपायें मगर किसलिए,
हमसे जब भी मिली दोस्तों की तरह।
हजारों हाथ लगते हैं नया एक घर बनाने को।
चिंगारी एक काफी है भरी बस्ती जलाने को।
उड़ेलो प्यार का पानी बुझा दो आग नफ़रत की,
नहीं तो आग ये लग जायेगी सारे जमाने को।
अपनी क्षमता-शक्ति का आभास होना चाहिए।
कुछ कठिन जग में नहीं विश्वास होना चाहिए।
प्रेरणा पाती है संतति पूर्वजों से ही सदा,
देश के निर्माण को इतिहास होना चाहिए।
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