राजा-राजा ऊपर...रंक-रंक सब नीचे.... Poem by Sushil Kumar

राजा-राजा ऊपर...रंक-रंक सब नीचे....

राजा-राजा ऊपर बैठे, रंक-रंक सब नीचे।
आगे-आगे राजा जावें, बाकी उनके पीछे।
ज़रा बगाबत की बू आई, पकड़ ले गए राज-सिपाही,
राजा के आगे ला पटका, जैसे हो माटी का मटका,
राजा के हाथों का हंटर, खाल रंक की खींचे।
राजा-राजा ऊपर बैठे रंक-रंक सब नीचे।
राजा अट्टहास करता है. रंक सिसकने में डरता है।
राजा अमृत पीकर बैठा, रंक रोज तिल-तिल मरता है।
तुम्हीं बताओ इन मुर्दों में, कौन प्राण अब सींचे।
राजा-राजा ऊपर बैठे, रंक-रंक सब नीचे।
कहीं नहीं बदलाब हमें तो सब-कुछ पहले जैसा दिखता।
ऊपर वाला ऊपर बैठा, ऊपर वालों की सी लिखता।
नीचे वालों की तकदीरें लिखता आँखें मीचे।
राजा-राजा ऊपर बैठे रंक-रंक सब नीचे।
हंटर फेंको राजा-बाबू, खाल खींचना छोडो।
पहले की सारी परंपरा, सभी रूढ़ियाँ तोड़ो।
ऐसा ना हो संसद में कोई टांग तुम्हारी खींचे।
खूब चले हो आगे अब होलो जनता के पीछे।
अब ना कोई ऊपर होगा और ना कोई नीचे।
देखो अपने दांये-बांयें देखो आगे-पीछे।.
राजा-राजा ऊपर बैठे रंक-रंक सब नीचे।
आगे-आगे राजा जावें, बाकी उनके पीछे।
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