बापू के प्रति Poem by Sushil Kumar

बापू के प्रति

उतरे अमावस रात्रि में, हे पूर्णिमा के चन्द्रमा।
तुम थे अखण्डित-राष्ट्र की पावन सुगन्धित आत्मा।
तुमने जगायी चेतना, फूंके मृतो में प्राण भी।
होगये तनकर खडे, जीवित तो क्या निष्प्राण भी।
तुमने अहिन्सा, सत्य के दो अस्त्र भारत को दिये।
कातकर चरखा स्वदेशी वस्त्र भारत को दिये।
तुम थे धरोहर राष्ट्र की, होगये समर्पित, राष्ट्र को।
हे राम! कहकर कर दिये निज प्राण अर्पित राष्ट्र को।
हे सत्य के पर्याय, हे नर-श्रेष्ठ, हे भारत-सुमन!
हम ज्योति तेरे दीप की, तुझको करे शत-शत नमन।
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POET'S NOTES ABOUT THE POEM
It was composed on the pious occasion of Gandhi-Jayanti 1995.
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Sushil Kumar

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