सरहदों पर कुछ लहू जो टपके Poem by Shashi Bhushan Kumar

सरहदों पर कुछ लहू जो टपके

सरहदों पर कुछ लहू जो टपके
शहीदों के,
जिस्म से निकल हिंदुस्ता में भर गया
सहादत देख वीरों की पूरी देश सेना बन गया
लहू में उफान इतनी थी जो जिस्म से निकला
और कुरान की आयातों मैं आ गया
गीता की श्लोकों में आ गया,
उस शहीदों की लहू में उफान इतनी थी,
जो जिस्म से निकला और रामायण के दोहे तक में
आ गया,
सरहदों पर कुछ लहू टपके शहीदों के,
कैसा लहू था जो कर्ज हम सबके ऊपर आ गया!

Tuesday, November 13, 2018
Topic(s) of this poem: indians
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success