नफरत को हटाओ मुहब्बत को जिंदा करो Poem by Shashi Bhushan Kumar

नफरत को हटाओ मुहब्बत को जिंदा करो

नफरत को हटाओ मुहब्बत को जिंदा करो
मरे हुए इंसान को फिर से जज्बा करो
गलती से जो खोया भूषण तूने
आंखों के उस अश्क को फिर से सजदा करो
अपने रूह, जां को बाजार में न रूसवा करो
मोहब्बत, वफा, दरियादिली सब छोड़ के
खुद से खुदी को इंसाफ दो,
पृथक एवं चेतन को तुम नया विश्वास दो
व्यक्तित्व और विश्वास को तुम नया ऊंचाई दो.
हारे हुए सब खेल को, यू तू फिर से जीत लो
फकत अपने रूह को, , फिर से तुम आवाज़ दो

Tuesday, November 13, 2018
Topic(s) of this poem: love and life
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