उठो परिंदे मरोगे और क्या Poem by Shashi Bhushan Kumar

उठो परिंदे मरोगे और क्या

उठो परिंदे मरोगे और क्या?
उड़ोगे आसमान में, तो
फिर गिरोगो और क्या! !
कुछ केहकर इस कदर
अब खुद से, खुद को, समझा लेता हूं,
उठाता हूं, मुट्ठी में धूल और
फूंक कर हवा में उड़ान देता हूं,
कहता हूं बड़ा हो गया हूं, पर
बचपन की कहानी,
जाकर गली गली में सुना देता हूं,
अरे किया खाक लिखेगा,
वह देख कर लिखने वाला, जो
जो मैं कहानी दीवाल पर लिख कर
कहीं सुनसान में मिटा देता हूं,

Tuesday, November 13, 2018
Topic(s) of this poem: poem
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