*हम ही तुम्हारे कब थे
तुम तो हमारे सब थे
*डूब गए नहीं बढ़ाया किसीने हाथ
अगरचे देखने वहां आये तो सब थे
इक वही दर जहाँ महफूज़ रहे हम
वर्ना दुशमन ए कू ए यार तो सब थे
थे फलक पर ये पाऊं कभी ज़मीन पर
जैसे गर्दिश में तारे वो सब थे
*कुछ तक़दीर ने मुँह फेर लिया हमसे
हमने सपने वैसे निखारे तो सब थे
इतना तन्हा सा था सफ़र ज़िन्दगी का
पीछे मेरे ही नक़्श ए पा वो सब थे
*मैखाने जाकर भी ना मिला सुकून
वहां भी किस्मत के मारे जो सब थे
*ठुकराते किसे अपनाते किसे तलब
शीश महल में अक्स प्यारे तो सब थे
अगरचे =Although
महफूज़ = Safe
कू ए यार = Street of the beloved
नक़्श इ पा = Footprints
अक्स = Image
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बहुत खूब ग़ज़ल कही है. ज़िंदगी की महरूमियों और दर्दो ग़म का बड़ा असरदार चित्र खींचा है आपने.