*हम ही तुम्हारे कब थे Poem by Talab ...

*हम ही तुम्हारे कब थे

*हम ही तुम्हारे कब थे
तुम तो हमारे सब थे

*डूब गए नहीं बढ़ाया किसीने हाथ
अगरचे देखने वहां आये तो सब थे

इक वही दर जहाँ महफूज़ रहे हम
वर्ना दुशमन ए कू ए यार तो सब थे

थे फलक पर ये पाऊं कभी ज़मीन पर
जैसे गर्दिश में तारे वो सब थे

*कुछ तक़दीर ने मुँह फेर लिया हमसे
हमने सपने वैसे निखारे तो सब थे

इतना तन्हा सा था सफ़र ज़िन्दगी का
पीछे मेरे ही नक़्श ए पा वो सब थे

*मैखाने जाकर भी ना मिला सुकून
वहां भी किस्मत के मारे जो सब थे

*ठुकराते किसे अपनाते किसे तलब
शीश महल में अक्स प्यारे तो सब थे

अगरचे =Although
महफूज़ = Safe
कू ए यार = Street of the beloved
नक़्श इ पा = Footprints
अक्स = Image

Wednesday, April 5, 2017
Topic(s) of this poem: love and life
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 05 April 2017

बहुत खूब ग़ज़ल कही है. ज़िंदगी की महरूमियों और दर्दो ग़म का बड़ा असरदार चित्र खींचा है आपने.

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