हया दुनिया से थी मगर ओझल हम से किया Poem by Talab ...

हया दुनिया से थी मगर ओझल हम से किया

हया दुनिया से थी मगर ओझल हम से किया
रुस्वाई ज़माने में थी पर्दा हम से किया

तेरा ये फ़साना भी मुन्फरीद सा है सनम
मोहब्बत उन से थी और प्यार हम से किया

सर ए राह जब इत्तेफ़ाकन मिले थे वो हमे
झुकाई पलकें सलाम ए अदब हम से किया

जिसे माना खुदा उसी ने किया ये सुलूक
इनायत उनपर ताज़ियाना हम से किया

कभी रहा था हमराज़ वो कमज़र्फ भी मेरा
खमसाई उस से की परहेज़ हम से किया

परेशान वाइज़ हम रिंदों से मिला कल शब्
राज़ ए ज़ीस्त बताओ दरखास्त हम से किया

इश्क़ भी था हम भी थे बेकसी भी थी तलब
जिसने जैसे जब जो चाहा हम से किया

ओझल - Hidden, concealed
रुस्वाई - Disgrace
मुन्फरीद - Unique
इनायत - favour, Kindness
ताज़ियाना - corporal punishment
कमज़र्फ - stupid, silly
खमसाई - closeness
परहेज़ - aloofness, abstinence

Wednesday, April 5, 2017
Topic(s) of this poem: love and life
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