तू भी सबकी तरह बेवफा तो नहीं Poem by Talab ...

तू भी सबकी तरह बेवफा तो नहीं

Rating: 4.0

तू भी सबकी तरह बेवफा तो नहीं
सहनी कोई हमे नयी जफा तो नहीं

छुपाए रखना अपने आग़ोश में मुझे
तेरा हूँ कोई पराया तो नहीं
यकता नहीं है वहां तेरी ये तड़प
तुझसे परे मुझे भी तस्कीं तो नहीं

अंधेरों में छुओ तस्सली तो हो
पास तुम ही हो कोई साया तो नहीं

लब्बैक दर ए यार सजदा किये हुए
नया कोई उनका फरमान तो नहीं

मिलता है सुकूं इबादत से तेरी
कहीं खुदा को मैंने पाया तो नहीं

अहल ए कलम मिटे फासले बढ़ाओ हाथ
बुलंदी पर तलब की सुखन आराई तो नहीं

आगोश = Bosom
लब्बैक = here I am standing before you
सजदा = prostration
फरमान = command
यकता= inimitable, singular
तसकीं = peace, satisfaction
इबादत = worship
अहल ए कलम= people of the pen
सुखन आराई = poetry

Wednesday, April 5, 2017
Topic(s) of this poem: love and life
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 05 April 2017

इस ग़ज़ल को ज़रा तराशा जाए तो इसकी खूबसूरती बढ़ जाएगी. काफ़िया और रदीफ़ का ध्यान रखना भी जरुरी है, आपकी कोशिश को सलाम.

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