हम यूँ आईने में कब देखते हैं
इस अक्स में क्या है जो सब देखते हैं
कौनसी बात सुनाई उन्हें लोगों ने
वह मुझे इस नज़र से अजब देखते हैं
तजरबे से शायद बोला मुझसे वो रकीब
इश्क़ कीजिये तो जनाब तब देखते हैं
नाकामियों से अब भर आया है जी
अब रोके रोक ऐ खुदा जब देखते हैं
जब भी किया इज़हार ए मुहब्बत उनसे
बोले हँसकर हमसे अब तब देखते हैं
आए चुपके वो जब कभी करीब हमारे
उन आँखों में वही तलब देखते हैं
कैसा मुंह लेकर उनकी मेहफिल में जाऊँ
नज़रें उठाकर हमे वो कब देखते हैं
होता है जब तेरी बेवफाई का जिक्र
फिर बज्म में खुद को आब आब देखते हैं
बना दिया उसने मुझको भी तमाशाई
दिन दहाड़े बस उनके करतब देखते हैं
ये क़यामत नहीं तलाब तो और क्या है
वो हमे हम उन्हें बेअदब देखते हैं
अब तब = soon, shortly
तमाशाई = Spectator
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