मैंने क्या किया Poem by Ambrish Kumar

मैंने क्या किया

Rating: 5.0

माँ बाप ने जो कहा वो मैंने किया
परिवारीजनों ने जो कहा वो मैने किया
अपनों ने जो कहा वो मैने किया
पर कभी सोचता हूँ, मैने क्या किया
दोस्तों ने जो कहा, वो मैंने किया
शिक्षको ने जो कहा वो मैने किया
बुजुर्गो ने जो कहा वो मैने किया
पर सवाल अब भी वही है, मैंने क्या किया
सरकार ने जो कहा मैंने वो किया
अधिकारी ने जो कहा वो मैंने किया
कानून ने जो कहा मैंने वो कहा
पर तुम्ही बताओ, मैंने क्या किया

मैंने क्या किया
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
हम अपने जीवन में अपने बड़े लोगो का या अपने से अधिक ज्ञानवानों की बाटे मान कर चलते रहते है, सफल होने पर सब कहते है मेने बोल था, पर असफल होने पर कोई आगे नही आता, पर वास्तव में असफल हुआ तो इसमें मेने खुद क्या किया
COMMENTS OF THE POEM
Jazib Kamalvi 11 October 2017

A sublime start with a nice poem, Ambrish. You may like to read my poem, Love And Lust. Thank you.

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