Ambrish Kumar

Ambrish Kumar Poems

मेरा गांव बदल रहा है, सोया हुआ रक्त उबल रहा है।
पहले मिलजुल कर रहते थे, अब एक दूसरे को निगल रहा है ।।
सुना था मकान कच्चे है पर रिश्ते पक्के होते थे गांव में ।
बच्चे बूढे, हारे थके श्रमिक किसान सब खुश थे छाव में ।।
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माँ बाप ने जो कहा वो मैंने किया
परिवारीजनों ने जो कहा वो मैने किया
अपनों ने जो कहा वो मैने किया
पर कभी सोचता हूँ, मैने क्या किया
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वोट देकर जिनको जिताया ।
कर भरोसा जिनको संसद पहुचाया।।
आज उनको सामने आइना रखते है ।
क्युकी आज कुछ तूफानी करते ।।
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माँ तुमने ये क्या कर दिया ।
गौद में ही मौत की नींद सुला दिया ।।

माँ तुम तो पतित पावनी थी ।
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संकल्प ही विकल्प है
प्राण वायु अल्प है
बीत रहा कल्प है
सोच क्या विकल्प है
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तुम्हारे साथ धीरे धीरे चलने लगा हूँ मै
तुम मानो या न मानो अब बदलने लगा हूँ मै

मै तुम्हारी, माँ से बराबरी नहीं कर रहा
...

The Best Poem Of Ambrish Kumar

मेरा गांव बदल रहा है

मेरा गांव बदल रहा है, सोया हुआ रक्त उबल रहा है।
पहले मिलजुल कर रहते थे, अब एक दूसरे को निगल रहा है ।।
सुना था मकान कच्चे है पर रिश्ते पक्के होते थे गांव में ।
बच्चे बूढे, हारे थके श्रमिक किसान सब खुश थे छाव में ।।
आज छांव छितर गई है, रिश्तों की डोर बिखर गई है ।
गांव के लोग भी प्रपंची हो गए, बुद्धि कुछ ज्यादा निखर गयी है ।।
बड़ो के मन मे बच्चो के लिए मोह नही है, बच्चो में भी द्रोह कही है।
क्षमा, ममता, प्रेम दुलार सब लुप्त, अब मानवता नहीं है ।।
क्रोध, द्रोह, छल, धृणा, षड्यंत्र, कुटिलता अब हर मन में टहल रहा है ।
आज ही मुझे एहसास हुआ, की मेरा गांव अब बदल रहा है ।।

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