भूख प्यास सब त्याग सदा,
चलता राही राहों पर, ,
चलता है खुद का शव लेकर,
राही अपने कंधों पर।
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संघर्षों के बड़े शिखर हैं,
पथ पर मेरे अड़े खड़े हैं।
चलना मुश्किल इन राहों पर,
पैरों में कांटे गड़े पड़े हैं ।
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हैं राम राम का देश यही, तुलसी का है उपदेश यही।
यही भागीरथ परिपाटी है, हां यही अवध की माटी है।।
है धाम पुण्य यह धामो का, श्रीरघुवर के बलिदानों का।
यही सागर की ख्याति है, हां यही अवधि की माटी है।।
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पार्थगाथा
प्रातः हाथी सजे हुए थे,
घोड़े कुछ घबराए थे, ,
मानो रणभूमि मध्य स्वयं यम,
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गांव की झोपड़ी
है नमन तुम्हें यै पवित्र मिट्टी,
मन से लिपटी तन से लिपटी, ,
नमन तुम्हें ये पवित्र मिट्टी।
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संघर्षों के बड़े शिखर हैं,
पथ पर मेरे अड़े खड़े हैं, ,
चलना मुश्किल अब राहों पर,
पैरों में कांटे गड़े पड़े हैं।
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I am a writer, poet, motivation speaker Proud to be hindu. Script writer, lyricist, sayar. Contact for Kavi Sammelan, Mushaira and live performance. Contact for business and work. vivekshukla47401@gmail.com And WhatsApp ~8112775937)
राही
भूख प्यास सब त्याग सदा,
चलता राही राहों पर, ,
चलता है खुद का शव लेकर,
राही अपने कंधों पर।
स्वयं स्वयं में विलीन होकर,
अंत ढूंढने चलता है।।
निकल शून्य से,
राही शून्य में ढलता है।
मृत्यु प्रतीक्षा में राही,
राहों पर अपनी चलता है।।
कभी कदा जो रुक जाऊं,
तो खुद को माफ करूं कैसे।
हुए शांत मन के भीतर,
मंजिल की आस भरूं कैसे।।
विषम परिस्थिति देख राहो की,
मन मेरा विचलित होता है।
कहता मन अब पथ को छोड़,
निद्रा स्वप्नों में खो जाऊं मैं।।
सारे दुर्लभ काजों को छोड़,
मन भीतर एक प्रेमदीप जलाऊं में।
अपने अंतर्मन में राही,
प्रश्नों में उलझा रहता है।।
मृत्यु प्रतीक्षा में राही,
राहों पर अपनी चलता है।
मृत्यु प्रतीक्षा में राही,
राहों पर अपनी चलता है।।
~विवेक शाश्वत
आखिरी दफा खामोशी का मलाल है तुझसे, तू गयी, तो खता तेरी नहीं, जानता हूं मैं। मगर भी हैं हजारों सवाल तुझसे।। तजुर्बा होता तो कभी करता ना इश्क तुझसे, ये तो वक्त की है खता, वरना सवाल मिलने का कोई ना था तुझसे।। हूं जिन्दा, तो कुछ सज़ा दे दिया कर, , दूर हो जाऊंगा, मरने के बाद खुदसे।। ये जो करीब मेंरे, कुछ मुस्कुराते चेहरे हैं, हो जाएंगे खामोश, कोई कह दो इनसे।। ~ विवेक शाश्वत शुक्ल 🖊️
आजीवन किया गया संघर्ष मात्र एक छोटी सी गलती करने की वजह से एक ही झटके में विफल हो जाता है। ~विवेक शाश्वत 🖊️
हमारा दायित्व है कि हम सत्यता के मार्ग पर चलें और पृथ्वी के अन्य जीवों को भी सत्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करें । ~विवेक शाश्वत 🖊️
थी आरज़ू मुकम्मल इश्क की हमें, है ग़म की मुंतशिर भी हो ना पाए, , दस्तक दी है, दरवाजे पर किसी ने फिर, इतनी रात में अब बाहर कौन जाए, , गला काटने के बाद मांगी माफी उसने, कमबख़्त हम थे जो माफ़ भी कर नहीं पाए, , इश्क कुर्बानी मांगती है शाश्वत, हम भिखारी भाव भी दे नहीं पाए, , शहर की बेबसी में क्यूं जला रहे खुद को, छांव बहुत है गांवों में, चलो चला जाए, , ~ विवेक शाश्वत✍️
आपने दो शब्द में ही बयां कर दी दुनिया का राज, अच्छा है इसी बहाने आज आईना तो देखा हमने.. टहल रहा था समंदर किनारे में हंसता हुआ, आंखों में आंसू आ गए गम समंदर का देखकर... खुद ही ढूंढना पड़ता है नदियों को रास्ता अपना, पहाड़ों को काटने वहां मजदूर नहीं जाते... समंदर की लहरें थम जाती हैं किनारे पर आकर, प्यासा अक्सर मर जाता है समंदर के करीब जाकर.. रोक नहीं पाओगे तुम हमें वीरान सड़कों पर भी, हमने पत्थर से पानी बनने का सफर तय किया है... यूं तो महफिलों में भी बताते थे अच्छाइयां हमारी, अकेले में मिले तो खामियां गिनाने लगे.. ठहर जा समंदर कुछ वक्त के लिए, मैं कश्ती लेकर फिर से उतरा हूं...