Raghawendra Pandey Poems

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1.
हर तरफ़ है छिड़ी समय को..

हर तरफ़ है छिड़ी समय को भुनाने की ज़िरह
कल का सौदा टके का, आज बेशकीमती है

कल था नवरात्र तो महँगी थी देवियों की शकल
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2.
शहर में कुछ गाँव होते

शहर में कुछ गाँव होते, गाँव में कोई शहर होता
बैठते मिल बात करते, ऐसा कोई पहर होता

दोनों ही घर से निकलते, मिलके जी भर बात करते
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3.
‘मौन यह कितना मुखर है’

जो भरा है श्रीविभूषित सौख्यप्रद भंडार से
वह ने कोई देवधन है
या न कोई मुक्ति प्रण है
यदि नहीं मनुजत्व उसमें, वह वीराना है सिफ़र है
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4.
लेकर क्या करोगे

प्राप्त करने को जिसे दिन भर लड़े
वह आ गयी रोती हुई सी शाम, लेकर क्या करोगे

हम प्रथम किस भाँति हों, विजयी बनें
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5.
देश युवाओं से बदलेगा

देश नहीं बदलेगा शहरों की गलियों से
ऐश-कैश से या फिर मस्ती रंगरलियों से
रहते जहाँ रथी पौरुष के
उन सब गाँवों से बदलेगा
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6.
हम जिए जाएँ लम्हें

हम जिए जाएँ लम्हें हर शान के मुताबिक़
हर शाम गुज़र जाये अनुमान के मुताबिक़

कुछ ऐसा करिश्मा हो मिट जाएँ भेद सारे
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7.
डर लगता है

ये हथकड़ियाँ और सलाखें, डर लगता है
लुटी शांति आए दिन रहता रेड-अलर्ट है शहरों में
जीवन की मधुरसता खोयी फ़न फैलाती लहरों में
बारूदी सुरंग पर बैठी इस दुनियाँ को अल्ला राखें, डर लगता है
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