तुलसी हाय गरीब की Tulsi Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

तुलसी हाय गरीब की Tulsi

तुलसी हाय गरीब की

मे तो दबा रहा
पर झंडा मेरा ऊंचा रहा
शायद में इस वजन को सेह पाऊं
पर दूसरों के बलिदान पर शोक ना जताऊँ।

अपनी अपनी सोच है
लोनों को किस चीज़ की खोज है?
इतने साल तो हमने सहन कर लिया
गरीबी की मार ने हमारा सबकुछ हर लिया।

कई लोग हमारा हमदर्द होने का दावा करते है
सर्वोच्च सदन को चलने नहीं देते है
हर चीज़ मे अड़ंगा डाल के पैसे का व्यय कर रहे है
हमारा नाम लेकर हमारी ही रोटी छीन रहें है।

इतने साल हमें दबाया गया
हमें गरीबी और जात पात के झंझट में उलझाया गया
रह गए हम सब तिरवसकार के झंगल में
पूरा देश बन गया कुश्ती के दंगल में।

शुर में ही किसी चीज़ का गला मत घोंटो
अपनी जवाबदेही को पूरी तरह से बांटो
आप अपने फ़र्ज़ को युही भुला नही सकते
जो कहा है वो करके तो दिखाते?

किसी के बलिदान को व्यर्थ मत जाने दो
थोड़ा सह लिया है थोड़ा ओर सहने दो
सुबह की किरण कुछ और रौशनी लाएगी
हमारी परेशानी का अंत जरूर लाएगी।

'तुलसी हाय गरीब की'जलाकर राख कर देगी
किसी को चेन से सोने नहीं देगी
सब कुछ मन के मुताबिक नहीं होगा
आने वाला कल सुखदायक कम हीं होगा।

Pic: - tripti sharmaa

तुलसी हाय गरीब की Tulsi
Monday, December 12, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 12 December 2016

welcoem aasha sharma Unlike · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 12 December 2016

Tripti Sharma · Friends with Hans Peripherals Wahhhh..... today by

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Mehta Hasmukh Amathalal 12 December 2016

x welcoem tripti sharmaa Unlike · Reply · 1 · Just now today by

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