दिल्ली का Smog Poem by Rakesh Sinha

दिल्ली का Smog

देश की राजधानी दिल्ली ने ओढ़ा है smog का कफन,
बच्चों के सपने और बूढ़ों की जिंदगी हो रही है दफन |
इंसान के लालच और लापरवाही की ये है इंतिहा,
पहले स्वच्छ यमुना को किया कलुषित
और अब हवा को भी कर दिया प्रदूषित |
अब तो खुली हवा में सांस लेना भी है दूभर,
न जाने कौन सी बीमारी घुस जाएगी अंदर |
चेहरे पर मास्क, आंखों में जलन, सिर में दर्द, गले में खराश
और सीने में घुटन का एहसास
किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा, सब हैं बदहवास |
मंत्री और आला अफसर बता रहे हैं विचार-मंथन को सफल,
अब brain-storming से निकालेंगे इस समस्या का कोई quick-fix हल |
राजनीतिक blame game का भी चल रहा है आदान-प्रदान,
इससे क्या समस्या का हो जायगा निदान?
कुछ दिनों के लिये विद्यालय रहेंगे बंद,
शायद इससे बन जायगी बात ये सोंच रहे सब अक्लमंद |
वर्ना फिर से odd-even फॉर्मूले को आजमाएंगे,
सिसकती जनता को और भी रुलाएंगे |
विकास की अंधी दौड़ में हम भी हो गये हैं अंधे,
न जाने कैसे-कैसे कर रहे हैं गोरखधंधे |
जंगलों और पेड़ों को हम काट रहे हैं,
सबको नयी-नयी बीमारियां हम मुफ्त बांट रहे हैं |
जल-निकास के रास्तों को हम पाट रहे हैं,
वाहनों और फैक्ट्रियों से हवा में जहर घोल रहे हैं,
बढ़ती GDP के नशे में सब डोल रहे हैं |
घास और मिट्टी की जागीर तो सिमटती ही जा रही है,
हंस रहा है cement और concrete मुस्कुरा रही है |
कहीं तेज विकास ही न दे दे विनाश को निमंत्रण,
लुप्त होता जा रहा है हमारा नियंत्रण |
वायु और जल तो हैं प्रकृति के अनमोल वरदान,
करना सीखो इनका उचित सम्मान |
वृक्ष ही तो नीलकंठ की भांति पीते हैं
धूल तथा कार्बन-डायक्साइड का जहर,
काटते जाएंगे इन्हें तो टूटेगा धरती पर
एक दिन प्रकृति का कहर |
वृक्ष अगर कटते हैं तो नये पेड़ भी लगाओ,
हरी-भरी इस धरती को बर्बादी से बचाओ |

Friday, January 20, 2017
Topic(s) of this poem: development,environment,nature,pollution
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