Rakesh Sinha

Rakesh Sinha Poems

एक ओर तो नारी शक्ति को,
दुर्गा, काली, सरस्वती, लक्ष्मी जैसे अनेक रूपों में हम पूजते,
देवी को प्रसन्न करने हेतु व्रत रखते, पूजा- अर्चना करते,
और वहीं दूसरी ओर देवी के जीवंत रूप,
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Do you ever have time?
To watch and appreciate
the crimson sunset and sunrise? ,
the sea waves lashing the shore and receding? ,
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किसी की five star रातों में शैम्पेन बरसता है,
तो कोई दो घूंट सादे पानी को तरसता है |
कोई रंगीन रातों में item songs पर थिरकती बार-बालाओं पर पैसे लुटाता है,
तो कोई भूख से बिलखते बच्चों को झूठी तसल्ली देकर सुलाता है |
...

(ये कविता उस समय लिखी गयी थी जब मोबाइल फोन को भारत में launch हुए लगभग एक साल बीता था | याद कीजिए उन पुराने दिनों को और इस कविता का स्वाद लीजिए |)
जब मैने बैंक का नया account खुलवाया
तो form में address के साथ mobile नंबर का जिक्र आया,
मैने Column को blank छोड़ा
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2014 कह रहा है bye-bye
और hello कहने को आतुर है 2015
चल रहा है greetings का आदान-पदान
सज रहीं हैं खुशियों की महफिलें
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लौकी की रातों-रात बढ़त का राज़ है खतरनाक रसायनों का इंजेक्शन,
लाल-लाल मीठे तरबूजों का राज़ है लाल रंग और मिठास का इंजेक्शन,
मिलावटी है स्वादिष्ट मिठाइयों का मावा,
पर सब करते शुद्धता का दावा,
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जीवन में सफलता के दो-चार सोपान चढ़ते ही
दौलत और सत्ता का नशा सर चढ़कर बोलने लगता है,
इंसान अपने अहं के वशीभूत होकर मदमस्त डोलने लगता है |
कोई सांसद तो कोई विधायक,
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निस्तेज सी धरा है, ग़मग़ीन है हवाएं,
गंगा भी है मलिन सी, उदास हैं शिखाएं |
अधर्मियों की ताकत बढ़ती ही जा रही है,
इंसानियत है घायल, हैवानियत गुनगुना रही है,
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कभी राह में घिसटते किसी लाचार अपंग भिक्षुक को देख कर मन में करुणा जाग उठती है,
तो कभी फूलों से भरे किसी बाग में प्रकृति का असीम सौन्दर्य देख मन शांति से भर जाता है |
कभी किसी श्रृंगारयुक्त युवती को देख कर मन आकर्षित होता है,
तो कभी किसी हास्य कविता पर खिलखिलाकर हंस पड़ता है |
...

ये कलियुग है,
सत्ता, पद और दौलत को ही अब है पूजा जाता,
ईमानदारी और नैतिक मूल्यों का मूल्य, तो अब शून्य है आंका जाता |
क्यों आज भी बच्चों को ये सिखाते हैं कि
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सब कहते हैं कि जीवन में अगर सफलता पानी हो,
तो अपने कामों का बढ़-चढ़ कर करो बखान,
ऐसा जताओ कि आप हो अत्यंत गुणवान और अति बुद्धिमान |
अपने कार्यक्षेत्र में आपकी निपुणता है जैसी,
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महानगरों की इस भागती-दौड़ती जिंदगी में,
कहीं खो गया है चैनो-सुकून |
न परिवार के लिये समय है, न खुद के लिये,
दिलों को रौशन नहीं करते यहाँ मंदिर के दिये |
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देश की राजधानी दिल्ली ने ओढ़ा है smog का कफन,
बच्चों के सपने और बूढ़ों की जिंदगी हो रही है दफन |
इंसान के लालच और लापरवाही की ये है इंतिहा,
पहले स्वच्छ यमुना को किया कलुषित
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सियाचेन के हिमस्खलन में दफ्न हो गये दस भारतीय जवान,
अनगिनत शहीदों की फेहरिस्त में दर्ज करा गये अपना नाम,
लहू को जमा देनेवाली और हड्डियों को गला देनेवाली ठंढ में
जो करते हैं सियाचेन में हमारी सीमाओं की रक्षा,
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वर्षा ऋतु की ये ठंडी फुहार,
जगाती दिलों में प्रकृति से प्यार |
हरियाली की चादर ओढ़ लेती है धरती,
मिट्टी की सोंधी खुशबू लाती है मदमाती बयार |
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छोटी सी है जिंदगी इसे प्यार से जियो,
रिश्तों को अपने संवार कर जियो |
क्या हासिल होगा ईर्ष्या और द्वेष से,
अपनों के साथ ही बढ़ते क्लेश से |
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आज गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर
आओ मिलकर करें उन वीर शहीदों को याद,
जिनकी कुरबानियों के दम पर हुआ ये देश आज़ाद |
२६ जनवरी १९५० को भारत का नया संविधान अस्तित्व में आया,
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इस कलियुग में एक नया मज़हब धरती पर है उभरा,
सभी के दिलों में खौफ़ है इसका गहरा |
अमेरिका, भारत, अफगानिस्तान या पाकिस्तान
सभी जगह फैले हैं इनके कदमों के खूनी निशान |
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मेरे मौला, मेरे मौला, इतना तू कर दे करम,
मेरे राम, वाहेगुरु, इतना तू कर दे करम |
देशभक्ति और इंसानियत को, बना दे तू सबका धरम |
सबके सिरों पर छत हो, सबके तन पर हों कपड़े,
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१. मेहनत अक्ल से कीजिए, सफलता का यही भेद,
उसमें पानी क्यों भरें, जिस बरतन में छेद ।
२. ईश्वर तेरी कलयुगी दुनिया का कैसा अजब है खेल,
चोर-बेईमान ऐश कर रहे, साधु रहे दुख झेल ।
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Rakesh Sinha Biography

Electrical Engineer by profession. Has a keen interest in music and poetry. Music website at www.rksinha59.in)

The Best Poem Of Rakesh Sinha

Nari Ka Samman

एक ओर तो नारी शक्ति को,
दुर्गा, काली, सरस्वती, लक्ष्मी जैसे अनेक रूपों में हम पूजते,
देवी को प्रसन्न करने हेतु व्रत रखते, पूजा- अर्चना करते,
और वहीं दूसरी ओर देवी के जीवंत रूप,
यानि बहनों, बेटियों और बहुओं को अपनी जलील हरकतों से
शर्मसार करने का कोई अवसर नहीं चूकते |
ये कैसी hypocrisy है, ये कैसा double-standard है?
सरस्वती और दुर्गा पूजा में देवी की अलौकिक दिव्य प्रतिमा की
धूप-दीप, शंख और घंटियों की गूंज के साथ,
अत्यंत भक्ति-भाव से आरती उतारते,
और पूजा पंडालों के बाहर, नारियों को बुरी नज़र से निहारते |
सड़क हो, बस-रेल हो, बाग-बगान हो या खेत-खलिहान,
हर जगह लुट रहा है नारी का सम्मान |
लाखों अनुयायियों वाले नेता और समाज के ठेकेदार,
कहते हैं - गरीबी हटा ओ, भ्रष्टाचार मिटाओ,
पर कोई अपने अनुयायियों को ये नहीं कहता
कि जहाँ भी तुम्हारे सामने किसी नारी के साथ कुछ गलत हो रहा हो,
सब मिलकर खड़े हो जाओ, करो पुरजोर विरोध गुंडों का,
और उन्हें छठी का दूध याद दिला ओ |
जबतक निर्भय होकर नारी नहीं रख सकती घर के बाहर कदम,
तबतक व्यर्थ है भरना सभ्य समाज का दम |
अलौकिक है माँ की ममता, बहन-बेटी का स्नेह और पत्नी का प्रेम,
हँसी-खुशी, निर्भय और निश्चिंत जीवन जीने का है उन्हें भी अधिकार |
बंद करो पग-पग पर यूं नारी का करना अपमान,
अन्यथा कभी नहीं मिलेगा तुम्हें देवी का वरदान |

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