Raat Bhar Poem by hilal chandausvi

Raat Bhar

इक दीया जगमगाता रहा रात भर।
दिल की दुनिया सजाता रहा रात भर।

ग़म के तूफ़ान में दिल की दहलीज पर-
तू खड़ा मुस्कुराता रहा रात भर।

ख़्वाब आँखों में आये फ़ना हो गये-
तू मगर याद आता रहा रात भर।

आसमाँ पर बिछी नर्म कालीन पर-
चाँद क्यूँ छटपटाता रहा रातभर।

Sunday, August 23, 2015
Topic(s) of this poem: love
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