Insaan Ho Jaye Poem by hilal chandausvi

Insaan Ho Jaye

कि इससे पेशतर मंज़र सभी वीरान हो जायें ।
चलो आओ कि ख़ुद में हम सभी इंसान हो जायें ।

ग़रीबों में भी थोड़ी रोशनी तक़सीम कर देना-
अगर ये चाँद तारे आपके मेहमान हो जायें ।

ये चाहत के बग़ीचे है इन्हें शादाब रहने दो-
दुआ मत कीजिये ऐसी कि ये वीरान हो जायें ।

ज़रा सोचो हमारी सम्त पत्थर फेंकने वालों-
हमारे घर के शीशे भी अगर चट्टान हो जायें ।

मुसलसल क़ज़ कुलाही ज़ेहन में अच्छी नहीं होती-
चलो इक दूसरे के वास्ते अंजान हो जायें ।

हो मन्ज़िल दूर कितनी भी मगर क़दमों चूमेगी-
इरादे जब किसी इंसान के चट्टान हो जायें ।

HILAL CHANDAUSVI (CHANDRANSHU TIWARI)

Sunday, August 23, 2015
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