नापाक जमीं को छूना नहीं चाहते Napak Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

नापाक जमीं को छूना नहीं चाहते Napak

नापाक जमीं को छूना नहीं चाहते

एक ही हल्ला काफी है
बस बाकी बची माफ़ी है
कर लो याद जिनको करना है
बस आगे तो दफ़न होना ही है।

आगे दरिया पीछे पहाड़ है
बस सुन लो तो शेर की दहाड़ है
एक ही बार में काम तमाम हो जाएगा
ये आपके कारनामे का अंजाम बुरा आएगा।

हम बर्बाद हो जाएगे
अंदर के दुश्मनो से अंजाम भुगतें गे
फिर भी जज्बा -ए - तूफ़ान दिखा देंगे
दुबारा हिंदुस्तान की और देखने की ख्वाहिश ही नहीं रखने देंगे

बहुत हो गया सताना
अब हो जाए दुसरा करबला
ढेर के ढेर नजर आएँगे
लाश किसकी है वो ही ढूंढ़ नहीं पाओगे।

सब्र का बांध अभी टुटा नही है
हमने आजतक किसी का कुछ लूटा नहीं है
हमारे पाँव नापाक जमीं को छूना नहीं चाहते
पर चारा नहीं रहेगा तो खात्मा ही करेंगे।

नापाक जमीं को छूना नहीं चाहते Napak
Tuesday, February 28, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 01 March 2017

welcome somnath mohanty Unlike · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 01 March 2017

welcome somnath mohanty Unlike · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 28 February 2017

welcoem rupal bhandari Unlike · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathalal 28 February 2017

सब्र का बांध अभी टुटा नही है हमने आजतक किसी का कुछ लूटा नहीं है हमारे पाँव नापाक जमीं को छूना नहीं चाहते पर चारा नहीं रहेगा तो खात्मा ही करेंगे।

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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