Khuda Poem by Ashutosh ramnarayan Prasad Kumar

Khuda

जैसे रेशमी किरणों से नहाती है धरती चाँदनी रात में।
वैसे हीं मेरा मन भींगता है आपकी यादों की बरसात में।
तनहाइ के अंधेरों में भी दिल में तेरी तस्वीर ऐसे चमकती है।
जैसे अमावस्या की रात झिलमिलाती है ताराें की बारात में।
अब हीरे जवाहर्ात में मुझे रास नहीं आते हैं कुछ भी,
जो मज़ा मिलता है मुझे आपके हाथों भेजे हुये सौग़ात में।
अब खुदा को याद करने की ज़रूरत नहीं रही,
अब सब कुछ भुल जाता हुँ आपकी मुलाक़ात में।
माना की हज़ार रंगीनियाँ से भरी है ये दुनिया,
मगर मेरे लिये आपसे कोई रंगीन नहीं है कायनात में।
आप हों आप समाये हैं कुछ ऐसे मेरे मेरे रोम रोम में,
अब आता नहीं है कोई आपके सिवा मेरे ख़यालात में।।

Wednesday, August 27, 2014
Topic(s) of this poem: self reflection
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