Flower Poem by Ashutosh ramnarayan Prasad Kumar

Flower

मैं तो बस एक फ़ुल हुँ,
लेकिन तेरी ज़िन्दगी महकाने के लिये काफ़ी हुँ।

मैं तो बस एक तारा हुँ,
लेकिन घुप अंधेरों में भी राह दिखाने के लिये काफ़ी हुँ।

मैं तो बस एक बुंद पानी का हुँ,
लेकिन एक सागर बनाने के लिये काफ़ी हुँ।

मुझे एक पत्थर का टुकड़ा समझने वाले
लेकिन तेरे शीशे का घर मिटाने के लिये काफ़ी हुँ।

जिसको तुने एक चिंगारी समझ कर फेंक दिया
लेकिन सारी दुनिया में आग लगाने के लिये हुँ

Wednesday, August 27, 2014
Topic(s) of this poem: self reflection
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