Hasrat Poem by Ashutosh ramnarayan Prasad Kumar

Hasrat

हम आए थे महफ़िल में आपकी रौनक़ बढ़ाने शान से,
देखकर आपके इतने कदरदान टूट गया, भ्रम अच्छा हुआ.

इसके पहले की कोई मुझको फेंक दे दिल से निकाल,
पहले हीं बाँध लिया अपना सामान, अच्छा हुआ.

देखकर दुसरों का कैसा बुरा होता है मोहब्बत में हाल,
ये हसरत पहले हीं दिया दिल से निकाल, अच्छा हुआ.

देखा लोगों को मेरे हर बात का गलत मतलब निकाल,
छोड़ दिया करना सबका ख़याल, अच्छा हुआ॰

छोड़ कर सब चल दिए जब मँझधार में थी नाव,
एक तिनका ऐसे वक़त पे ख़ुब आया काम, अच्छा हुआ,

अब किसी सहारे की रही सही उम्मीद भी जातो रही,
लोगों ने ख़ुब किया नाम बदनाम, अच्छा हुआ॰

Wednesday, August 27, 2014
Topic(s) of this poem: desire
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