हमारी मज़बूरी
दूर रहना थी हमारी मज़बूरी
जैसे मृगनी थी कस्तूरी
खुद की खुश्बू से परेशान
कैसे बचाती अपनी शान? हमारी मज़बूरी
नहीं था किसी से गीला
बस अवसर ही ऐसे आन मिला
हुस्न और दिखावा जैसे हुआ दुश्मन
कैसे चाहुँ में शांति ओर अमन? हमारी मज़बूरी
सोच सोच कर बुरा होता था हाल
मन के होते थे बुरे हाल
बस डर था की दरार ना पड जाए
बिना सोचे समझे किसी मुसीबत में ना पड जाए। हमारी मज़बूरी
दोस्ती की थी हमको कदर
मन में भरा था खोने का डर
कोसते थे अपने आप को
क्योंकि आन पड़ी थी जी जान को। हमारी मज़बूरी
दिल है कि मानता ही नहीं
आँखे भी चुराता नहीं
मस्त रहता है अपने ही आगोश में
डर जाता है आहत होते ही खरगोश से। हमारी मज़बूरी
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दिल है कि मानता ही नहीं आँखे भी चुराता नहीं मस्त रहता है अपने ही आगोश में डर जाता है आहत होते ही खरगोश से। हमारी मज़बूरी