खोखले किरदार (False Characters) Poem by Kezia Kezia

खोखले किरदार (False Characters)

Rating: 5.0

निभाते हैं चरित्र अपने मंच पर

कितने अलग अलग किरदार

हर अजब गजब भाव के साथ

कितनी विषमता आती है

समय के फेर से बादल

चंदन के पोर की महक

सा कुछ तो छोड़ जाते है

ये चरित्र बिना पुकारे

बिना दहके उड़ जाते हैं

छोड़ जाते है मंच को

किसी नई कहानी के लिये

छोड़ जाते हैं नये सामंजस्य

नवागंतुकों को लुभाने के लिये

कितने चरित्र छल जाते है

दर्शको के मन को

फिर ढल जाते है मलीन होकर

उन पुराने से खिलोनो के पुलिंदो मे

जिनसे खेल कर मन मे आक्रोश उत्पन्न हो जाता है

जिनसे ऊब कर कनखियाँ चढ़ गई

जिनसे आज एक अजीब सी दुर्गंध आ रही है

उन्ही चरित्रों से अभिभूत होकर

और कितने पात्र गढ़ दिये जाते हैं

अंत मे सभी खोखले किरदार ही सामने आते है

जो रागों और तानो से हटकर

शिलाओ से घिर कर

अकस्मात ही फूट कर चूर हो जाते हैं

ये खोखले किरदार

जीवन के उन हिस्सों को प्रदर्शित करते हैं

जिनसे एक चक्रवात आकर

टकरा कर बीत चुका होता है

ये चरित्र फिर पथ प्रदर्शक बन जाते हैं

अपने ही लिये एक

खोखले मंच को तैयार करते हैं

*****

Tuesday, March 28, 2017
Topic(s) of this poem: hindi,philosophical
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 28 March 2017

एक अच्छी दार्शनिक विचार की कविता जिसमे मनुष्य और मानव जीवन की सार्थकता की बहु कोणीय पड़ताल की गयी है. अति सुन्दर.

1 0 Reply
Kezia Kezia 28 March 2017

महत्वपूर्ण टिप्पणी करने लिये के धन्यवाद श्रीमान

0 0
Kezia Kezia 28 March 2017

महत्वपूर्ण टिप्पणी करने लिये के धन्यवाद श्रीमान

0 0
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success