मै नेता हूँ Poem by jitendra pathak

मै नेता हूँ

Rating: 5.0

मै नेता हूँ.
मै नेता हूँ और एक बढ़िया बनिया हूँ,
क्योंकि मै सीटों का क्रेता हूँ विक्रेता हूँ.
मोल-भाव की मेरी अलग बोली है,
लोगो को कैसे मुर्ख बनाये, इसकी मैंने दुकान खोली है.
मै सरकार गिराने की साजिशेंबनता हूँ,
और दुसरो की साजिशों में खुद को पाता हूँ.
कभी रेलवे, कभी फिनांस तो कभी संचार पाता हूँ,
कुछ करूँ न करूँ, पर माल खूब कमाता हूँ.
जनता ने मुझे चुना, क्योंकि उन्हें चुनना था,
मै चुनाव जीता क्योंकि -मुझे माल कुटना था.
जनता का चुना हुआ मैं जनप्रतिनिधि हूँ,
इसलिए समेकित बुराइयों का मै सह्प्रतिनिधि हूँ.
मै क्रेता हूँ, मै विक्रेता हूँ,
मै नेता हूँ.

Saturday, April 12, 2014
Topic(s) of this poem: political humor
COMMENTS OF THE POEM
Jazib Kamalvi 19 November 2018

Seems A good start with a nice poem, jitendra. You may like to read my poem, Love And Iust. Thank you.

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