मैं और मेरी तन्हाई Poem by jugal milan

मैं और मेरी तन्हाई

मैं और मेरी तन्हाई
अक्सर साथ रहते हैं
जब भी रहूँ अकेला मैं
वो बस यही कहते हैं
तनहा है जिंदगी
और मैं हूँ तन्हाई
कैसे रहेगा मेरे बगैर
मैं हूँ तुम्हारी सच्चाई
उदास न होना मेरे जीवन
मैं हूँ तुम्हारी परछाई
जहाँ भी रहोगे तुम अकेले
वहाँ तुम्हे हम कभी न भूले
अक्सर तुम्हारे साथ रहकर
जज्बातों को हम परखा करते
अनुभव क्या होते हैं?
ये हम तुम्हे बताया करते..
मदद करो सबकी तुम
मदद करो सबकी तुम
पर आश न करो किसी से तुम
यही है जिंदगी जिसमे है जीना
वरना रह जाओगे तुम तनहा
ऐसा ही होता है मेरे साथ
जब आश लगाके बैठता हूँ
सबकुछ सुनसान हो जाता है
और मैं तनहा रह जाता हूँ
फिर साथ देती है मेरी परछाई
मैं और मेरी तन्हाई

***जुगलमिलन ***

POET'S NOTES ABOUT THE POEM
fully fact that when man is alone his think his life that what about life...?
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