आ फिर ठहर जायें Poem by Kezia Kezia

आ फिर ठहर जायें

Rating: 5.0

आ फिर ठहर जायें

उस सुनहरी शाम पर

जो पहुँचा देती है

यूँही किसी अधूरे मुकाम पर

जो साक्षी बन जाती है

दिन और रात के मिलन की

बैठें दो घड़ी

साथ-साथ लें चाय की चुस्कियां

बातें हो फिर वही

जो रह गयी थी अधूरी कभी

आ फिर ठहर जाएँ

उस सुनहरी शाम पर

जहाँ से जिंदगी में जिंदगी की शुरुआत हुई

ना तकरार की दीवार बनायें

ना शिकायतों का ज़खीरा बढ़ाएं

बात हो बस भली-भली

आ फिर ठहर जायें

उन चंद लम्हों को ढूँढने

जिन्हें पाने का सफ़र शुरू किया

साँसें थमने तक ढूंढ नहीं पाए

आ फिर ठहर जायें

और साँस थमने से पहले ही ढूंढ लें

***

Tuesday, August 18, 2020
Topic(s) of this poem: love and life,wait
COMMENTS OF THE POEM
M Asim Nehal 22 August 2020

आपकी कविताओं में ज़िन्दगी की सच्चाई छुपी होती है, आपकी बात दिल से दिल तक पहुँचती है, ये कलम का जादू नहीं तो और की है. ढेरों दाद, बहुत बधाईयां 100++

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Rajnish Manga 18 August 2020

एक दार्शनिक गंध को ले कर चलती थमती बेहतरीन काव्य अभिव्यक्ति. जब कोई चाय की चुस्कियों के बीच किसी के सामने अपने शिकवे शिकायत के लिए भी जगह निकाल लेता है तो समझ लें कि जिंदगी में नयी शुरुआत के लिए भी कदम बढ़ा सकता है. Thank you so much.

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Sharad Bhatia 18 August 2020

बहुत ही उम्दा और बहुत बेहतरीन कविता. आओ बैठे कुछ देर, सिर्फ कुछ देर, " आओ बैठे कुछ देर, सिर्फ कुछ देर, जिंदगी को भी अपने साथ बिठाए, कुछ देर सिर्फ कुछ देर।। उन लम्हों को याद कर जाये, जो तेरे मेरे दरम्यान थे, कुछ देर, सिर्फ कुछ देर।। जो तुझे मुझे सकूं दे जाये, कुछ देर सिर्फ कुछ देर ।। जानता हूँ, अब वक़्त भी नहीं देगा साथ, फिर भी आओ बैठे कुछ देर, सिर्फ कुछ देर ।। एक प्यारा सा एहसास मेरी नन्ही कलम से (शरद भाटिया) आभार

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