अहा! बचपन के वो दिन Poem by Jaideep Joshi

अहा! बचपन के वो दिन



अहा! बचपन के वो दिन।

खेलकूद जब दोष नहीं था,
सिर पर बस्ते का बोझ नहीं था,
धुर मस्ती में दिन थे गुज़रते,
रातें कटती थीं तारे गिन।

अहा! बचपन के वो दिन।

लाड़-प्यार से सभी रिझाते,
एक टांग पर दौड़े आते,
थे मात-पिता के आशा बिन्दु,
उदास रहते थे वे हम बिन।

अहा! बचपन के वो दिन।

भाते थे जब कथा-कहानी,
गोद खिलातीं दादी-नानी,
कल्पना के स्वप्न-लोक में,
सच्चे लगते थे परी और जिन्न।

अहा! बचपन के वो दिन।

ओस पर नंगे पाँव थे खेले,
मित्रों के संग लगते मेले,
गर्मी हो, सर्दी हो या फिर,
वर्षा की हो रिमझिम-रिमझिम।

अहा! बचपन के वो दिन।

COMMENTS OF THE POEM
Kavya . 28 June 2013

excellent poem...10/10...sach mein 'bachpan ke woh din'..............

1 0 Reply
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