ओ बरखा, तू बरसना Poem by Kezia Kezia

ओ बरखा, तू बरसना

Rating: 5.0

ना मेघों से बरसना

ना नभ से बरसना

ना सावन में

ना भादो में बरसना

ना दुख में

ना उन्माद में बरसना

ना तीज पे

ना त्योहार पे बरसना

ना दिन में

ना काली रात में बरसना

ना तेज बरसना

ना थम के बरसना

ना नदी पे

ना रेत पे बरसना

जब राह देख कर राही की

नैन पत्थर हो जाएँ

ओ बरखा,

तब तू झमाझम

इन नैनों से जम के बरसना

***

Tuesday, October 6, 2020
Topic(s) of this poem: rain,tears,wait
COMMENTS OF THE POEM
M Asim Nehal 11 October 2020

बारिश कब हमारी फरियाद सुनती है, इसे अपनी आंखों से गिरने दें और दर्द से राहत Hone de. Bahut khoob, I agree with Shri.Rajnishji's comments.

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Varsha M 06 October 2020

Bahut bahut haseen kavita. Barsha ko aasuoon as joodna atti uttam. Sabdoon ka laey bahut behatreen. Aabhar

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Rajnish Manga 06 October 2020

एक विरह गान जिसने आंसुओं की शान बढ़ा दी. अद्वितीय रचना.

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Sharad Bhatia 06 October 2020

बेहतरीन कविता एक बेहतरीन कवयित्री के द्वारा बहुत दुख हैं इन आँखों में बह जाने दो बन के बरसा आभार आपका जो आपने इतनी बेहतरीन रचना से हम सबको मंत्र मुग्ध कर दिया 100+

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