बस ऐसे ही Poem by Kezia Kezia

बस ऐसे ही

Rating: 5.0

सोचने बैठी तो पाया कि

बात तो बस इतनी सी थी

साँझ के आँगन में

कुछ सपनों की राख बाकी थी

पतझड के मौसम में

सूखे पत्तों की सरसराहट बाकी थी

बीते सावन के बाद उगे हुए

शैवाल की गंध बाकी थी

बचे हुए चंद शब्दों में

छुपी हुई ग़मगीन गज़ल बाकी थी

टूटे पंख लिये एक चिड़िया

उड़ने को बेकरार बैठी थी

खुशियों की स्याह हो चुकी

धुँधली सी तस्वीर बाकी थी

इतने पर भी होठों पर

जमी ज़िद्दि मुस्कान बाकी थी

वक़्त ने रची थी जो पहेली

उसकी उलझन अभी बाकी थी

बात तो कुछ भी नही थी

लेकिन जुबान से सुनानी बाकी थी

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Wednesday, September 30, 2020
Topic(s) of this poem: sadness,evening
COMMENTS OF THE POEM
Varsha M 30 September 2020

बात तो कुछ भी नही थी लेकिन जुबान से सुनानी बाकी थी....aisa bhi hota hai kya Bahut behtareen rachna. Dhanyawad.

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Kezia Kezia 07 October 2020

kavita pasand karne ke liye bahut bahut dhanyawad Varshaji.

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Rajnish Manga 30 September 2020

कुछ अनछुये प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त होने वाली संबंध-कथा जो एक स्याह तस्वीर तथा उलझन से बाहर आने की जद्दो जहद कर रही है. गहरी अनुभूतियाँ दिल को छू जाती हैं. धन्यवाद. साँझ के आँगन में / कुछ सपनों की राख बाकी थी टूटे पंख लिये एक चिड़िया / उड़ने को बेकरार बैठी थी

0 0 Reply
Kezia Kezia 07 October 2020

kavita pasand karne ke liye bahut bahut dhanyawad Shriman

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