खुशी Poem by Kezia Kezia

खुशी

Rating: 5.0

देखती थी रात को

चाँद तारों के बीच

आसमान में उड़ते

हवाई जहाजों को

जब सभी भाई बहन

गर्मी की रातों में

छत पर पंक्ति में सोया करते थे

गिना करते थे

आते जाते जहाजों को

बड़ी चील जैसे लगते थे

बड़ा अचरज होता था

कैसे उड़ पाते हैं

कहाँ आते जाते हैं

फिर हाथ हिला-हिला कर

बुलाया करते थे

तब दिमाग में भौतिकी का

फितूर कहाँ था

अगली ही सुबह फिर

अपने अपने कागज़ के हवाई जहाज़

उड़ाया करते थे

जो ख़ुशी होती थी

वो आज हवाई जहाज़ में

सफ़र करके भी नहीं हो पाती

***

Friday, September 25, 2020
Topic(s) of this poem: childhood ,happiness,innocence
COMMENTS OF THE POEM
Varsha M 25 September 2020

This is just splendid beyond words. I'm speechless flowing with your poetry. It's just awesome.

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M Asim Nehal 25 September 2020

Bahut khoob. Yehi ehsaas mera bhi hai....Ab unlimited air travel ke baad bhi woh maza nahi aata...5 ***

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Sharad Bhatia 25 September 2020

वाह मेरे पुराने दिन जब छत पर हम सब इकट्ठे सोया करते चाँद, तारों से बातें किया करते पिताजी के चिल्लाने पर चुप चाप सो जाओ धीरे - धीरे हँसा करते एक बेहतरीन और दिल छूने वाली कविता आपका बहुत-बहुत आभार की आपने मेरे पुराने दिन ताजा कर दिए 100++

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