ईर्ष्या - प्यार Poem by Ajay Srivastava

ईर्ष्या - प्यार

ज्यादा मत सोच विचार मत करो|
सकोंच को त्याग दो|
खून को मत सुखाओ|
दिल से तुरन्त निकाल दो|
तुरन्त सामने वाले को व्यक्त कर दो|
समय को बिना नष्ट किए बोल दो|
अपनी नफरत/ ईर्ष्या को रोको मत बोल दो|
सन्तोष का धन ले लो|
प्यार के लिए थोडी जगह बन जाएगी|
प्यार का अर्थ समझ मे आएगा|

ईर्ष्या - प्यार
Thursday, November 3, 2016
Topic(s) of this poem: jealousy
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