वातसल्य Poem by Ajay Srivastava

वातसल्य

वातसल्य तुम कभी न कम करना|
तेरा मेरा स्वय ही भाग जाएगा|

प्यार को तुम निशच्क्षल दिए जाओ|
अपने पराए को हम मिटाऐगे|

आचल का अहसास तुम दिलाओ|
दूरीओ को निकटता हम बदलेगे|

दिल को विशाल तुम बनाए जाओ|
सोच मे परिवर्तन हम करेगे|

त्याग की क्षमता तुम बडाए जाओ|
असंतोष को छोडने को हम विवश हम करेगे|

वातसल्य
Monday, July 11, 2016
Topic(s) of this poem: affection
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success