वृद्ध Poem by Ajay Srivastava

वृद्ध

वरण हे तुम्हारा वादा है हम सब का|
रहना है साथ प्रण है हम सब का|
दर्द तुम्हारा बाटना है उद्धेश्य बन गया है हम सब का|
धर्म को निभाना है मार्ग बन गया है हम सब का|

वर्ण तुम्हारे प्रेरणा स्त्रौत बन गए हम सब के|
रचने का प्रयास करना है हम सब को|
दया नही प्रेम का अहसास दिलना है हम सब को|
ध्यान दिलाना तुम्हारे प्रति कर्तव्यो को पूरा करने का हम सब को|

वस्तुनिष्ठ न होकर कर्मनिष्ठ बनना है हम सब को|
रम जाना है सेवा भाव मे हम सब को|
दरिदता कर्म की छोड कर , कर्म की सम्पन्नता बनानी है हम सब को|
धर्म है हमारा, कर्म है हमारा है अहसास दिलाना है हम सब को|

Sunday, July 3, 2016
Topic(s) of this poem: old age
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