मेरी साँसों में तुम Poem by Kavya .

मेरी साँसों में तुम

बहुत नफरत पैदा करने की
कोशिश कर ली तुमने,

पर दिल से तुम्हे जुदा
नहीं कर पाए हम,

आँखों में बसे होते
तो आंसूं के सहारे निकाल देते,

दिल में जो उतर गए हो तुम
हर धड़कन की आवाज़ बन चुके हो तुम,

बोलो कैसे तुम्हे भूल जाए
इन साँसों को कैसे हम रोक पाए!

मेरी साँसों में तुम
Wednesday, March 30, 2016
Topic(s) of this poem: love
COMMENTS OF THE POEM
Abduhoo Salamath 27 August 2016

आँखों में बसे होते तो आंसूं के सहारे निकाल देते, दिल में जो उतर गए हो तुम हर धड़कन की आवाज़ बन चुके हो तुम, वाह किआ कहने हैं।...दिल में उत्तर गाये गए हो तो कैसी उतारूं? बहुत खायब।.मज़ा आगया पढ़ने में.

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Ajay Kumar Adarsh 26 August 2016

behad khubsurat rachna Kavya ji.......10+. kisi ko bhulane ki Zado-Zahad ka bezor chitran... thanx for share..... meri os se..... Chalo tum na aaye. fir bhii kuchh to bat ho gayi.. teri yade jo dil men thi ab kagaj pe utar kar, duniya ki khatir nagmat ho gai..

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