नौ रस Poem by Rakesh Sinha

नौ रस

Rating: 5.0

कभी राह में घिसटते किसी लाचार अपंग भिक्षुक को देख कर मन में करुणा जाग उठती है,
तो कभी फूलों से भरे किसी बाग में प्रकृति का असीम सौन्दर्य देख मन शांति से भर जाता है |
कभी किसी श्रृंगारयुक्त युवती को देख कर मन आकर्षित होता है,
तो कभी किसी हास्य कविता पर खिलखिलाकर हंस पड़ता है |
कभी शहीदों की गाथाएं वीर रस को जन्म देती है,
कभी किसी तूफान या सूनामी में प्रकृति का रौद्न रूप ह्लदय में भय उत्पन्न कर देता है,
तो कभी ISIS का कोई जघन्य कृत्य मन को वीभत्स रस से भर देता है |
अद्भुत हैं मानव जीवन के ये नौ रस!
अपने जीवन में अपनाएं शांति, करुणा, हास्य और वीर रस को,
रौद्न और वीभत्स रस सदा रहें दूर,
कोशिश यही हो हमारी भरपूर |

Thursday, February 18, 2016
Topic(s) of this poem: life
COMMENTS OF THE POEM
Aarzoo Mehek 18 February 2016

khoobsurat sandesh is kavita ke madhyam se parhne waalo tak pohonchaya hai. bohot shukriya.

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