हम से ही Poem by Ajay Srivastava

हम से ही

वो कहते कुछ कर के तो दिखाऔ|
हम कहते करने का अवसर तो दो|

वो कहते रास्ते तो अपने आप बनाने पडते है|
हम कहते है हर कोई आपकी तरह सामर्थ्यवान नही होता|

वो कहते है वही तो सामर्थ्यवान की कसोटी है|
हम कहते है तो त्यार हो जाऔ कसोटी की क्षमता देखने को|

वो कहते है हम देखगे नही परखने के लिए बने है|
हम कहते है हम भी परखने के लिए नही रास्ते पर अपनी पहचान बनाने के लिए बने है|

वो कहते पहचान तो हम से ही है|
हम कहते है प्रेरणा तो हम से ही है|

हम से ही
Monday, February 8, 2016
Topic(s) of this poem: acceptance
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Ajay Srivastava

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