बंद करो Poem by Ajay Srivastava

बंद करो

यदि महगाई को आप भागना चाहते है।
यदि धार्मिक उन्मांद घर में नहीं बिठना है ।
यदि आतंकवाद की बीमारी नहीं पलने देना चाहते ।
यदि नैतिक मूल्यों को निद्रा में नहीं चाहते है।
यदि किसानो के लिए नकली आसु नहीं बहाना चाहते।
यदि सभी व्यक्ति को अपने काम ध्यान दिलाना चाहते है।
यदि सभी व्यक्ति से महिलाओ का सम्मान करवाना चाहते है।
कोई भी व्यक्ति स्वतंत्रता / पद का दुर्पयोग नहीं ना करे।
यदि सारी बातो की चाहत दिल से है।
तो बंद करो, तो बंद करो ।
देश से भ्रष्टाचार बंद करो ।

बंद करो
Friday, October 9, 2015
Topic(s) of this poem: corruption
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