ना तो तू नफ़रत करता हैं
ना ही मुझे चाहता हैं
यही सिलसिला
अब मुझे बहुत सताता हैं...
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आजकल मिलती नही नज़रें उनसे
फिर भी उनका ख्याल हैं
वो भूल गया मुझे
अपनी आँखों और हँसी का
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तुझे पाने की ज़िद तो कभी थी ही नहीं
बस तुझे खोना नहीं चाहता
शायद मेरे कहने का अंदाज ग़लत हो
पर तुझे भी एहसास हैं
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गली नुक्कड़ नगर चौराहा
गूँज रहा हैं एक शौर दोबारा
झूठे वादो के जंजालों में
उलझ रहा हैं फिर से ग़रीब दोबारा...
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आज फिर तेरी आँखें याद आई हैं
कुछ तो हैं तेरे मेरे दरमियान
कि आज भी मेरी आँख भर आई हैं
आज फिर तेरी याद आई हैं...
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अरमां लिए आँखों में
बस चलता चल...चलता चल
कुछ कर दिखाने का
सब जीत जाने का
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रोक ना पाया दिल को
इक पल नज़रें जो तुमसे मिला बैठा
बस उस पल में ही
मैं तुम्हे जिंदगी बना बैठा
...
ना बिखर तू मंज़िल करीब हैं
जिसकी करता था तू इबादत
वो खुदा तेरे करीब हैं...
जो जलती हैं आग तेरे सीने में
...
तेरी बेरुख़ी...
ना तो तू नफ़रत करता हैं
ना ही मुझे चाहता हैं
यही सिलसिला
अब मुझे बहुत सताता हैं...
तू कुछ तो कर
सिवाय बेरुख़ी दिखाने के
तेरा चुप रहना
मेरा हर पल चैन चुराता हैं...
माना की इश्क़ एकतरफा हैं
जैसे कि मैं रोज इबादत खुदा की करता हूँ
माना की मुझे मालूम न पड़े
पर वही खुदा मुझे पार तो लगाता हैं...
ना तो तू नफ़रत करता हैं
ना ही मुझे चाहता हैं
यही सिलसिला
अब मुझे बहुत सताता हैं
ना कर अब इतनी बेरुख़ी भी
बस यहीं मुझे सताती हैं...