वक़्त की नज़ाकत को समझो,
आलम गुज़रने की बात ना करो,
क़ज़ा भी है मेहकी हुई,
अभी बेहकी बेहकी बातें ना करो,
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कैसा अजीब सा आलम है इस जहां में,
एक ही आदमी के कितने रूप है ज़िन्दगी में,
यहाँ इब्तिदा होते ही ज़िन्दगी के अंज़ाम का ख़ौफ़ है,
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