Ajay Srivastava Poems

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121.
तरसता - भारतवर्ष

आवाज उठती है, चिंगारी बनती है।
सामूहिक आवाज बन जाती है, असर होता है।
निमंत्रण मिलता है बात चीत का माहौल बनता है।
विचारो का आदान प्रदान होता है, सहमति की और कदम बढ़ते है।
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122.
है ईश्वर क्या करू

कभी परिस्थिति रोकती है।
कभी वातावरण रोक देता है।
तो कभी असफलता सामने आती है।
तो कभी भेदभाव आड़े आ जाता है।
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123.
हवा प्यार की

जब धरती माँ हाथ फैलती है ।
जब मन्द हवा सासो से मिलती है।

जब कोई वीर सपूत देश के लिए बलिदान देता है।
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124.
चुप व शांत

उसने हमें सोचने को विवश कर दिया।
उसने हमें अपना दिल टटोलने के लये विवश कर दिया।
उसने एक एहसास को जन्म दे दिया।
उसने उसके दिल और हमारे दिल की शक्ति को तोलने को विवश कर दिया।
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विज्ञानं की श्रेष्ठता।
समय का महत्व।
कर्म की प्रयोगिकता।
परिश्रम का फल।
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126.
गलती

स्वीकारते तुम भी नहीं, हम भी कहाँ मानते है।
आप अपना कर्म करते, हम अपना कर्म करते है।
तुम भी इंसान हो हम भी वही इंसान है।
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127.
छूने की चाह

दिल को छूने की चाह।
दर्द की परत से होकर जाती है।
जहा परत को हटने को तयार नहीं होती।
वहाँ पर अहसास पर भी परत पड़ जाती है।
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128.
फूल का अस्तित्व

सबको आकर्षित कर दिया
वातावरण को सुगंधित कर दिया
कली जब फूल बनी
अपने अस्तित्व की पहचान को दिखा दिया
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129.
खोज

हर कोई मिल जायेगा

अपनी कोशिशों की लगन बड़ा दो
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130.
जरूरत

भक्ति नही करता हुँ
स्वार्थ सिद्धि करता हुँ
डर छुपाने की कोशिश करता हुँ
जरूरत पड सकती है
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