Jab Dharti Karvat Leti Hai (जब धरती करवट लेती है) Poem by Pushpa P Parjiea

Jab Dharti Karvat Leti Hai (जब धरती करवट लेती है)

Rating: 5.0

जब पाप बढ़े अत्याचार बढ़े तब धरती करवट लेती है





जब एक गरीब की आह निकले तब धरती करवट लेती है

कन्या भ्रूण की हत्या हो तब धरती करवट लेती है
जब स्वार्थ के आगे धर्म झुके तब धरती करवट लेती है

जब भगवन् के नाम पर पाप बढ़े तब धरती करवट लेती है
जब कोई पापी पाप से न डरे

किसी कन्या का जब सत् हरे तब धरती करवट लेती है
जब धरती करवट लेती है तब ज्वालामुखी बनकर फटती है

जब धरती करवट लेती है तब जग को सुनामी देती है
जब धरती करवट लेती है तब अकाल, अतिवृष्टि होती है

धरती करवट ले इंसां को तब कहती है संभल जाओ अब भी तुम
यह तो सिर्फ मेरा एक नमूना है

यदि न संभले अब भी तुम तो प्रलयकाल आ जाएगा
जब धरती करवट लेगी तब ऐ इंसां तेरा सर्वनाश हो जाएगा

बच ले अब तू पापों से और न कर तू नरसंहार यहां
जिस जीवन को तू बना नहीं सकता फिर क्यों उसे रौंद रहा तू यहां

कन्यास्वरूप देवी है उसकी इज्जत करना सीख जरा
मद में तू घुल गया है जग के रिश्ते तू भूल गया है

क्या अच्छा, क्या बुरा इसका फर्क तू अब कर ले जरा
जब इंसान सुन ले बात जरा? धर्म की राह पर चले जरा?

तब धरती खुश होकर हंसती है
और अन्न-जल दे इंसान का पालन करती है।

Friday, April 15, 2016
Topic(s) of this poem: alone
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 16 April 2016

अद्वितीय कविता. निरंतर बढ़ते जाने वाले पापों के कारण मानव और दानव का अंतर ही मिट चला है. कन्या भ्रूण-हत्या और खूनखराबा भी बेरोकटोक जारी है. ऐसे में प्रकृति अपना विकराल स्वरूप दिखा कर तबाही लाती है: यदि न संभले अब भी तुम तो प्रलयकाल आ जाएगा जब धरती करवट लेगी तब ऐ इंसां तेरा सर्वनाश हो जाएगा

1 0 Reply
Pushpa P Parjiea 08 August 2017

na jane keise aaj aapke sare comments dekh paai hun bhai mafi chahti hun late reply ke liye.. is kavita par aapke utsahvardhak comments ke liye dhanywad bhai

0 0
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success