Pushpa P Parjiea

Pushpa P Parjiea Poems

तकते रहे राहें हम उम्र के हर मोड़ पर
उम्मीद का छोड़ा न दामन क़यामत की दस्तक होने तक
मुस्कान सजाये होठों पर हम जीते गए अंतिम आह तक
सोचा कभी मिल जाय शायद कहीं खुशियों का आशियाँ हमें भी
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रहगए हैं अबकुछपलइस साल केअंतके
होने वालीहै नईसुबह सपनो के संसार में
दूर गगन तारों कीलड़ी, टिक टिककरतीये घडी
सुना रहीधड़कनमानोअंतिमसांसोकेइससालकी
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Hausale buland rakh aie pathik tu
हौसले बुलंदरखऐपथिकतू
Zamane kiin chingariyonme
ज़मानेकी इनचिंगारियों में
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Sundar hai syaahi(ink)  teri ya sundar mere ye alfaz hain

Teri srishti ki sundrata mere eshware badi hi bemishal hai 
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Ek kampan si ho jati hai

Ek lahari si uth jati hai
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वो गुनगुनाती सी हवाएं
दिल को बहलाते जाएँ

करे हैं मन की अब
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aate hain tufan par thaharate nahi


akar chale jate hain par us barbadi se tu darna nahi
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Kuchh bahana de de aie zindagi

Ji janeko mai lalchaun.
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Kuchh tufano k bich..
Milti bhi hai raahat kahin

Kuchh anjano ke bich milti hai
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Badal barse savan me..

Dharti odhe hari chadariya
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11.

oo asma ke sitaron kar lo kuchh rukh is or bhi


meri kuchh suno or sunao tum kuchh aapni bhi
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मेरी निंदियारानी


बहुत ही खूब सूरत है तू मेरी निंदिया रानी
...

चलपड़ेथे कई विचारों के मंथन संग,
बहगए थे अनजानएक बहाव सेहम
न आसमा दिख रहा न ज़मीं दिख रही थी
न ही एहसास कोई न ही मन में कमी थी
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निशब्द, निशांत, नीरव, अंधकार की निशा में
कुछ शब्द बनकर मन में आ जाए,
जब हृदय की इस सृष्टि पर
एक विहंगम दृष्टि कर जा
...

क्यूं होती पथरीली जीवन की राहें,
क्यूं न मिलते कोमल फूल यहां।
क्यूं होती खुशी के लम्हों के बाद,
जलते से जीवन की राहें यहां।
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चलो न मितरा कुछ सपने सजा लें,
हम तुम एक नया जहां बना लें।
आ जाओ न मितवा कभी डगर हमारी,
तुमसे बतियाकर अपना मन बहला लें।
...

जब पाप बढ़े अत्याचार बढ़े तब धरती करवट लेती है
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....जिनके साथ बचपन खेला,
जिनसे सुनी लोरियां मैंने
, जिसका साया छावं थी मेरी,
जिनके लिए थी एक नन्ही परी मै,
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एक पंछी उड़ गया
छोड़ा घर उसने धरती का आसमा पर घर बसा लिया
जब वो पंछी बोला कराहकर.. जाना होगा अब मुझे इस धरती के जहाँ से..
आज एक आश टूट गई.
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कहीं तू सजता शादी के मंडप में
कहीं तू रचता दुलहन की मेहंदी में
कहीं सजता तू द्दुल्हे के सेहरे में
कहीं बन जाता तू शुभकामनाओं का प्रतिक
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The Best Poem Of Pushpa P Parjiea

दिले नादां (Dile Nadan)

तकते रहे राहें हम उम्र के हर मोड़ पर
उम्मीद का छोड़ा न दामन क़यामत की दस्तक होने तक
मुस्कान सजाये होठों पर हम जीते गए अंतिम आह तक
सोचा कभी मिल जाय शायद कहीं खुशियों का आशियाँ हमें भी
पर थे नादान हम कि न समझ सके बेवफा ज़माने के सितम आज तक
अंतिम मोड़ पर पता चला कोई नहीं अपना यहाँ
हम तो इक मेहमान थे सबके लिए बस आज तक
कितने नादाँ थे न समझ सके अपनों की फ़ितरत को
कितने नादाँ थे न समझ सके बेगानों की मतलब परस्ती को
हर पल का मुस्कुराना पड़ गया भारी यहाँ
सबने भुला दिया ये कहकर कि हम तो अकेले में भी मुस्कुरा लेते हैं
दर्दे दिल की दास्ताँ न सुना ए दिल! किसी को
ये बस्ती है जहाँ इंसा के दिल पत्थर के होते हैं

Pushpa P Parjiea Comments

Pushpa P Parjiea 14 March 2017

thanks alott rajnish ji for apriceation & very nice comments. sorry for late reply

3 0 Reply
Rajnish Manga 15 April 2016

We welcome you on this Forum, Pushpa ji. I have seen a couple of your poems and find that they are quite promising. There is a lot of variety but freshness of expression is the mainstay of your poetry. I wish you all the best.

3 0 Reply

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